जयपुर, 28 अप्रेल। पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अशोक गहलोत ने कहा है कि निजी स्कूलों में फीस वृद्धि में मनमानी को लेकर अभिभावक परेशान हैं, सड़कों पर उतर आये हैं, 20 से 50 प्रतिशत तक की फीस में वृद्धि ने सरकार की नाकामी को पूरी तरह उजागर कर दिया है। सरकार मूकदर्शक बनी हुई है। अभिभावकों को मजबूर होकर उच्च न्यायालय की शरण में जाना पडा है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि फीस नियंत्रण में राज्य सरकार पूरी तरह नाकाम रही है। महंगाई सूचकांक के आधार पर विद्यालय में उपलब्ध सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए औचित्यपूर्ण फीस निर्धारित करनी चाहिये। निजी स्कूलों की मनमानी के चलते अप्रत्याशित वृद्धि के खिलाफ राज्य सरकार को कठोर कार्रवाई करनी चाहिये। स्कूलों में अब भी कापी-किताबें, बस्ते, ड्रेस, जूते आदि स्कूल से या उनके द्वारा निर्धारित दुकानों से ही खरीदने पड़ते हैं, जिनकी कीमतें सामान्य दरों से कहीं ज्यादा होती है।
गहलोत ने कहा सरकार या तो खुद किताबें छपवाये या अधिकतम मूल्य निर्धारित करे। बस्ते और ड्रेस आदि की दरें भी खुले बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक दरों के अनुसार तय की जानी चाहिये। उन्होंने कहा कि फीस वृद्धि के विरोध में शिकायत करने वाले अभिभावकों की राज्य सरकार में कोई सुनवाई नहीं हो रही है। ऐसा लगता है कि राज्य सरकार जानबूझकर उदासीन बनी हुई है और निजी स्कूलों को लूट की खुली छूट दे दी है, जबकि निजी स्कूलों द्वारा कानून का पालन कराना उनकी जिम्मेदारी है।
कानून के अनुसार सरकार ने विद्यालय स्तरीय फीस निर्धारण समिति का गठन किया है, जिसमें अभिभावक व अध्यापक संगम मिलकर फीस का निर्धारण करते हैं। इसके निर्णय के विरूद्ध सम्भागीय आयुक्त को अपील करने का अधिकार भी दिया गया है। उसके पश्चात् राज्य सरकार को शिकायत करने का प्रावधान किया गया है। आश्चर्य इस बात का है कि खुद सरकार इस कानून को लागू नहीं करवा पा रही है।
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