फर्जी मार्केशीट और दस्तावेजों के चलते 3000 सीटों पर हुए उपचुनाव

मोदी सरकार फिजुल खर्च कम करने के लिए एक साथ चुनाव करवाने के कर रही प्रयास
लेकिन राजस्थान में गांव की सरकार में 3 हजार सीटों पर उपचुनाव, करोडो का फिजुल खर्च  
जयपुर। मोदी सरकार चुनावी खर्च को कम करने के लिए लोक सभा और विधानसभा चुनाव को एक साथ करवाने के प्रयास कर रही थी, वही राजस्थान सरकार ने गांव की सरकार को स्मार्ट बनाने के लिए पंचायतीराज संस्थाओं मे चुने जाने वाले जनप्रतिनिधियो की शैक्षणिक योग्यता निर्धारित की गई थी। लेकिन राजस्थान सरकार का यह फैसला घाटे का सौदा रहा। राजस्थान में पंचायतीराज संस्थाओं में फर्जी मार्कशीट और फर्जी दस्तावेजो के जरिए हजारो सीटों पर चुनाव लडे। जिसके बाद राज्य सरकार को करोडो रूपए खर्च कर फिर से उपचुनाव करवाने पडे। राजस्थान में बीते तीन साल में गांव की सरकार चुनने के लिए 7 बार उपचुनाव हुए।
देश में राजस्थान ही पहला ऐसा पहला राज्य था जहां पर पंचायती राज संस्थाओं के लिए चुने जाने वाले जनप्रतिनिधियों की शैक्षणिक योग्यता निर्धारित की गई। सरकार ने वर्ष 2015 में हुए पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव में सभी स्तरों पर उम्मीदवारों के लिए अलग-अलग शैक्षणिक योग्यताएं निर्धारित की थी। लेकिन गांवों की सरकार के मुखियाओ का कुर्सी का मोह नहीं छूटने के कारण उन्होंने चुनाव लड़ने के दूसरे रास्ते अपना लिए। जनप्रतिनिधियों ने फर्जी मार्कशीट और टीसी तैयार कर चुनाव लड़ा। फर्जी शैक्षणिक दस्तावेजों से चुनाव लड़ कर जीतने वाले जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध शिकायतें प्राप्त होने पर सरकार ने उनके खिलाफ कार्रवाई की और हजारों जनप्रतिनिधियों को कुर्सी गंवानी पड़ी। उन ग्राम पंचायतों में जहां पर जनप्रतिनिधियों ने फर्जी शैक्षणिक दस्तावेजों के आधार पर चुनाव लड़ कर चुनाव जीता। वहां पर शिकायत दर्ज होने के बाद जनप्रतिनिधि अपनी कुर्सी बचाने के लिए लगातार प्रयासरत रहे। इससे ग्राम पंचायतों का विकास भी प्रभावी तरीके  नहीं हो सका।  इससे स्पष्ट प्रतीत हो रहा है कि राजस्थान में पंचायती राज संस्थाओं में शैक्षणिक योग्यता लागू करने का सरकार की मंशा  घाटे का सौदा रहा। क्योंकि ग्राम पंचायतों में विकास कार्य नहीं हो पाए और कई जगहों पर समय से पहले ही लाखों रुपए खर्च करके उप चुनाव करवाने पड़े।
शैक्षणिक योग्यता लागू करने होने पर चुनाव संपन्न होने के बाद से लेकर जुलाई 2017 तक करीब ढाई वर्ष के अंतराल में 686 पंच सरपंच के विरुद्ध फर्जी दस्तावेजों के मामले विभागीय स्तर पर प्राप्त हुए है। इन मामलों में सरकार ने कार्रवाई कर उन्हें पद से हटाया है। आंकड़ों की बात की जाए तो फर्जी शैक्षणिक दस्तावेज से चुनाव लड़ने के मामले में अलवर जिले के पंचायती राज संस्थाओं के जनप्रतिनिधि अग्रणी रहे है।  अब तक एक जिला प्रमुख, 3 प्रधान,4 उप प्रधान, 19 जिला परिषद सदस्य , 128 पंचायत समिति सदस्य , 199 सरपंच ,176 उपसरपंच  तथा 2456 वार्ड पंचो की सीटों पर उपचुनाव हुए। यानि इन तीन सालों के भीतर राजस्थान में अब तक कुल 2986 सीटों पर उपचुनाव हुए। बार बार चुनाव होने से गांव की विकास की डोर थम गई और चुनावों में करोडों रूपए का फिजूल खर्च हुआ।

गांव की सरकार के लिए ये है योग्यता— 
सरकार ने जिला परिषद सदस्य एवं पंचायत समिति सदस्य चुने जाने के लिए दसवीं कक्षा उत्तीर्ण, ग्राम पंचायत स्तर पर सरपंच के लिए आठवीं कक्षा उत्तीर्ण होना अनिवार्य किया था। जबकि वार्ड पंच के लिए शैक्षणिक योग्यता निर्धारित नहीं की गई। यानी जिला प्रमुख और प्रधान के लिए दसवीं कक्षा और सरपंचों के लिए आठवीं कक्षा पास होना जरूरी है।


अप्रैल 2015 से फरवरी 2018 के मध्य संपन्न कराए गए उपचुनावों की स्थिति
चुनाव अवधि       जिला परिषद सदस्य    प.स.सदस्य          सरपंच    उपसरपंच       पंच 
जुलाई 2015                2                                11                  13            48              863
जनवरी2016               1                                10                  12            20              271
अगस्त 2016              6                                24                  21           15              258
नवम्बर 2016             3                                24                  32           27              260
मार्च 2017                  1                                   8                  28           16              216
सितंबर 2017             2                                 24                  63           24              292
दिसम्बर 2017           4                                  27                  40          26               296


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इनका कहना है.
पहली बार पंचायतीराज में शै​क्षणिक योग्यता में संशोधन किया गया था। पढे लिखे लोगों को आने के लिए पहला प्रयोग गांव की सरकार में किया गया था। ग्राम पंचायतों में सरपंच समेत सभी पदों पर पढा लिखा ​व्यक्ति होना चाहिए। जिससे विकास में किसी भी तरह की बाधा ना हो।लेकिनजनप्रतिनिधियों की  फर्जी मार्कर्शीट की शिकायत आई है। जिनके खिलाफ पंचायतीराज लगातार कार्रवाई कर रही है और ये प्रक्रिया निरंतर जारी है।
राजेंद्र राठौड,ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज मंत्री 

यदि गांव की सरकार का मुखिया चुनने से पहले ही दस्तावेजों की जांच ठीक तरह से होती तो उपचुनावों में करोडो रूपए का फिजुल खर्च नहीं होता। यदि किसी जनप्रतिनिधि ने फर्जी मार्कशीट के जरिए चुनाव लडा है तो धारा 38  (4 ) के तहत उसे निलंबन का प्रावधान है। यदि आरोप विरचित हो जाते है तो सदस्यता समाप्त होने का भी प्रावधान है।
संदीप कलवानिया,एडवोकेट,राजस्थान हाईकोर्ट 



नियम बनाने से पहले मैकेलिज्म डवलप करना पडता है। शै​क्षणिक योग्यता निर्धारित करने से पहले  दस्तावेजों को सरकार जांचती तो फर्जीवाडे के इतने सारे मामले सामने नहीं आते।
अर्चना शर्मा,कांग्रेस उपाध्यक्ष